कई बार कृत्रिमता की चकाचौंध मनुष्य को मौलिकता के मार्ग से भटकाकर सत्य से दूर कर देती है। जो हार को हार मान लेता है, वह उपलब्धियों के पायदान से सर्वथा के लिए नीचे गिर जाता है, लेकिन जो हार को हार न मानकर एक चुनौती मानता है, वह अनिवार्यतः लक्ष्य तक पहुंचने की क्षमता रखता है।
- हार जिसे हरा दे, वह तो कायर है, जो उस हार से शिक्षा ले, उसे अपने पौरुष से परास्त कर दे, वह वास्तव में विजयी है। कर्मवीर सदैव आशावादी होता है। असफलता को वह हार नहीं मानता है, बल्कि ईश्वर की ओर से आगे दिए जाने वाले दुर्लभ अवसर का पर्याय मानता है।
- कृत्रिमता मनुष्य की मोम की बनी मूर्ति की सदृश है और मौलिकता देहधारी चेतनायुक्त मनुष्य की तरह। कृत्रिमता का संबंध संसार से है, जबकि मौलिकता का ईश्वर से । कृत्रिमता बांस की तरह खोखली एवं मौलिकता प्रभु की दया की तरह अनंत आनंद दायिनी है। इस संसार का सबकुछ कृत्रिम है, चाहे वह सुख हो, संबंध हों या उपलब्धियां ईश्वर की हर रचना मौलिक है।
- वहीं मानव निर्मित सबकुछ ही काल की यात्रा के साथ क्षरणशील हैं। मानव का हर स्वार्थ केंद्रित कर्म पश्चाताप एवं दुख के साथ समाप्त होने के लिए बाध्य होता है, जबकि निष्काम भाव से किया गया कार्य समय आने पर अपने प्रभुत्व का परिचय देता है।
- कत्रिम संसार कभी मौलिकता देवत्व है जिसे परास्त नहीं कर सकता। संस्कारों की जिस पृष्ठभूमि से जो आता है, वह वैसा ही सोचने एवं करने को बाध्य होता है। विषाक्त हृदयी व्यक्ति में चिंतन एवं कर्म की पवित्रता की अपेक्षा नहीं की जा सकती। संस्कार ही व्यक्ति के कर्म एवं चिंतन की दिशा तय करते हैं। इसके आधार पर ही उसके भावी जीवन का ग्राफ बनता चला जाता है।
- सक्षम पद पर आसीन होने पर भी कई लोग निहित स्वार्थो के चलते सत्य का साथ देने में उकताते हैं।