पुणे में तीन मस्जिदों ने खोले महिलाओं के लिए दरवाजे
लंबे संघर्ष के बाद पुणे की तीन मस्जिदों ने महिलाओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। इस्लाम में महिलाओं और पुरुषों की बराबरी के इस संघर्ष के लिए पांच साल से जूझ रही यास्मीन पीरजादे ने इसके लिए मुहिम चलाई थी। उनके गांव से लेकर पुणे शहर की दो मस्जिदों में नमाज कक्ष की दिशा बताने वाले ये बोर्ड लगे हैं जिन पर लिखा है- अहम एलान..ख्वातीन (महिलाएं) के लिए इंतजाम है।
पांच वक्त की नमाज की अनुमति देने के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट को विचार करना है। मगर उसके पहले ही तीन मस्जिदों-मुहम्मदिया जामा, बागबान और कोंडोवा पारबेनगर मस्जिद के ट्रस्ट ने यह कदम उठाया।
राष्ट्रीय अधिकार संरक्षण आयोग ने सभी राज्यों व केंद्र सित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस कर उन मदरसों की पहचान करने के कहा है, जिनमें गैर मुस्लिम छात्रों शिक्षा दी जा रही है। एनसीपीसीआर प्रियांक कानूनगो ने कहा कि सरकार द्वारा फंडेड या मान्यता प्राप्त मदरसों में गैर मुस्लिम छात्रों के दाखिल होने के बारे में विभिन्न जगहों से शिकायतें मिली हैं।
इसलिए सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को ऐसे मदरसों की पहचान करने को कहा गया है। साथ ही गैर-मुस्लिम छात्रों को इन मदरसों से स्कूलों में भेजने को लेकर नोटिस जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड ने विवादास्पद बयान दिया था कि वह मदरसों में गैर मुस्लिम छात्रों को दाखिल करना जारी रखेगा। इसलिए विशेष सचिव अल्पसंख्यक को इसके बारे में पत्र लिखा गया है।
इसमें साफ कहा गया है कि गैर मुस्लिम छात्रों को इस्लामी शिक्षा देना अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है औरकहा, ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का सरासर उल्लंघन है। ऐसे सभी मदरसों की पहचान पुनर्विचार करने का किया आग्रह ।
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन इफ्तिखार अहमद जावेद ने सात जनवरी को एनसीपीसीआर से उनके पत्र पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि गैर हिंदू भी तो संस्कृत स्कूलों में जाते हैं। उन्होंने कहा कि मदरसों में केवल धार्मिक शिक्षा ही नहीं दी जा रही है बल्कि एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के तहत बच्चों को आधुनिक शिक्षा भी प्रदान की जा रही है।
मिशनरी स्कूलों में भी हर धर्म के बच्चे पढ़ते हैं। वे खुद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़े हैं। इसलिए आयोग को पत्र पर पुनर्विचार करना चाहिए। बता दें कि बीते आठ दिसंबर को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जारी किए गए पत्र में 30 दिनों के भीतर इस संबंध में कार्रवाई रिपोर्ट साझा करने को कहा गया था।
उनसे तीन दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है। यहां ये भी बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 28 (3) माता-पिता की सहमति के बिना बच्चों को किसी भी धार्मिक निर्देश में भाग लेने के लिए बाध्य करने से रोकता है। मदरसे मुख्य रूप से देश में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए जिम्मेदार हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं। इनमें मान्यता प्राप्त मदरसे, गैर मान्यता प्राप्त मदरसे शामिल हैं।