प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार द्वीप का दौरा किया था, जिसके एक साल बाद यहां एक विशेष सैन्य बुनियादी ढांचा की विकास योजना बनाई गई थी. भारत के दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर के संगम स्थल पर स्थित अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का अपना रणनीतिक महत्व है. चीन जैसे पड़ोसी मुल्क से सुरक्षा और प्रतिस्पर्धा के लिहाज से यह काफी अहमियत रखता है. और यही वजह है कि भारत यहां अपना नौसैनिक अड्डा विकसित कर रहा है. लेकिन चीन भारत के इस कदम से परेशान है.
कुल 24 बंदरगाहों के साथ 450 मील समुद्री क्षेत्र में फैला ये द्वीप हिंद महासागर क्षेत्र में खास महत्व रखता है. द्वीप श्रृंखला का यह सबसे उत्तरी बिंदु म्यांमार से केवल 22 समुद्री मील की दूरी पर है, जबकि सबसे दक्षिणी बिंदु इंडोनेशिया से केवल 90 समुद्री मील दूर है.
यहां शिबपुर में नौसेना के हवाई स्टेशनों आईएनएस कोहासा और कैंपबेल बे में आईएनएस बाज के रनवे का विस्तार किया जा रहा है. एक बार रनवे के चालू हो जाने के बाद, भारतीय नौसेना अपने P-8I समुद्री निगरानी और टोही विमान को संचालित करने में सक्षम हो जाएगी. इसके बन जाने से यहां भारतीय सैनिकों, अतिरिक्त युद्धपोतों के साथ-साथ ड्रोन को तैनात करने में मदद मिलेगी.
भारत के इस कदम से चीन की हाइड्रोकार्बन आपूर्ति में बड़ी रुकावट आ सकती है. इसका परोक्ष मकसद चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना भी है. गौरतलब है कि चीन ने भारत को परेशान करने के लिए श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और होर्मुज की जलीय सीमा का उपयोग करने का प्रयास किया था लेकिन भारत से उस मंसूबे को पूरा नहीं होने दिया.
भारत अंडमान द्वीप का सैन्यीकरण करता है, तो उसे अपने पड़ोसी चीन से सतर्क रहना होगा. द ग्रेट कोको आइलैंड और लिटिल कोको आइलैंड – भौगोलिक रूप से अंडमान द्वीप समूह का एक अहम है, जोकि जलमार्ग मार्ग के बीचोबीच है. जिसके माध्यम से चीन मलक्का की जलीय सीमा में प्रवेश करता है.
सरकार इसे ‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ग्रेट निकोबार द्वीप समूह के समग्र विकास’ परियोजना के तहत विकसित कर रही है. भारत के प्रमुख थिंक टैंक NITI Aayog द्वारा परिकल्पित परियोजना एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT), एक ग्रीनफ़ील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक टाउनशिप और एक 450-MVA जीएस और बिजली संयंत्र का निर्माण करना चाहती है.