lerner line logo
lerner line logo

मनुष्य अपनी आदतों का गुलाम होता है, जीवन की नकारात्मक आदतें को ऐसे सुधार सकते है

मनुष्य अपनी आदतों का गुलाम होता है। उससे मुक्त होने के लिए जनमेजय की तरह ही यज्ञ करना पड़ेगा तभी वह जन्म-जन्मांतर की नकारात्मक आदतों के सर्पों की आहुति दे सकता है।

श्रीमद्भागवत कथा पुराण में प्रसंग है कि श्रृंगी ऋषि के शाप से अभिमन्यु पुत्र राजा परीक्षित को तक्षक नामक सर्प ने काट लिया। इससे क्षुब्ध होकर परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्पों के सफाए के लिए सर्पयज्ञ का आयोजन किया, जिससे यज्ञकुंड में आकर सर्प गिरने लगे, लेकिन सर्पों का सरदार तक्षक नहीं आ पा रहा था। जनमेजय को जब पता चला कि तक्षक अपने बचाव के लिए देवताओं के राजा इंद्र के सिंहासन से लिपटा हुआ है, इसलिए आहुतियां व्यर्थ जा रही हैं तब उसने ‘इंद्राय स्वाहा-तक्षकाय स्वाहा’ मंत्र का जप किया। इससे सिंहासन सहित इंद्र तथा तक्षक सर्प यज्ञकुंड में खिंचकर आने लगे।

यह कथा मनुष्य की पांच ज्ञानेंद्रियों तथा उनकी सर्पों जैसी नकारात्मक कामनाओं की ओर इंगित करती है। दरअसल मनुष्य का मन छठी इंद्रिय है, जो राजा है और पांच ज्ञानेंद्रियों आंख, कान, नासिका, जिह्वा तथा त्वचा से लिपटा रहता है। आंख से कुदृष्टि, कान से अभद्र श्रवण, नासिका से नकारात्मक वायु-ग्रहण, जिह्वा से गलत स्वाद एवं दुर्वचन तथा त्वचा से अवांछित स्पर्श की प्रवृत्तियां किसी जहरीले सर्प से कम नहीं हैं। मनुष्य के सकारात्मक भाव देवताओं के सूचक हैं तो नकारात्मक भाव तथा चिंतन उसे दैत्य की श्रेणी में खड़ा करते हैं। नकारात्मकता का भाव जब मन से पूरी लिपट जाता है तब व्यक्ति काम-क्रोध, लोभ जैसे विचारों की आदतों का भंडार हो जाता है।

मनुष्य अपनी आदतों का गुलाम होता है। उससे मुक्त होने के लिए जनमेजय की तरह ही यज्ञ करना पड़ेगा तभी वह जन्म-जन्मांतर की नकारात्मक आदतों के सर्पों की आहुति दे सकता है। जन्म-जन्मांतर का आशय पीढ़ी-दर-पीढ़ी से ही लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह ध्रुव-सत्य है कि मनुष्य पर वंशानुगत प्रभाव पड़ता है। जीवन में सत्-संस्कारों द्वारा ही मनुष्य श्रेष्ठ जीवन प्राप्त कर सकता है।

More Read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

You Might Also Like

Discover
Shorts Story
Collection